अमृत महोत्सव

अमृत महोत्सव

अनंतकोटी ब्रह्मांडनायक श्रुतिज्ञान संपन्न ब्रह्मात्मैक्यानुभवी समर्थ सद्गुरू स्वामी अनिलजी महाराज प्रकट दिन, अमृत महोत्सव

माया का अज्ञान हमे अनादि काल से घेरे हुए हैं। इस अज्ञान से निर्माण हुए दुख और परेशानियों मे बुरी तरह डुबे हुए हैं। इससे छुटकारा केवल मनुष्य जीवन में ही संभव है। मनुष्य जीवन मे ही इस मायावी सपनोंकी दुखभरी दुनिया में हमारी माता बन कर केवल सद्गुरू ही हमे अगाह करनेवाले होते है की बेटा आप को तो संसारताप का तीव्र बुखार चढा हुआ है। श्री गुरू ही उस बुखार का इलाज करते हैं।

गुरू याने अंधःकार का नाश करनेवाले, ज्ञान का प्रकाश देनेवाले, अज्ञान मिटाकर, नष्ट करके, स्वयंभू ज्ञान की स्मृति का अनुभव करानेवाले परमेश्वर हैं।
जितना पुराना अज्ञान है उतनी ही पुरानी श्री गुरू परंपरा है।
हमारे ऋषि मुनी जो प्राचीन काल से भारतवर्ष के गुरू परंपरा भाग है, जिन्होंने परमात्मा का अनुभव किया, परमेश्वर से एकता प्राप्त की, अद्वैत परमात्मा का स्वयंही अनुभव किया, उन्होंने मानवजाति के कल्याण हेतु यह अपौरुषेय ज्ञान प्रस्थानत्रयी ग्रंथोंमे सन्निहित किया। उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद्भगवतगीता यह प्रस्थानत्रयी ग्रंथ, अपौरुषेय ग्रंथ है। जो सूक्ष्म ज्ञान सिद्धांत इन शास्त्र ग्रंथों में अंतःस्थापित है वह मानवी बुद्धि से परे है। केवल ज्ञानी सद्गुरू के कृपाप्रसादसेही साधक बुद्धी सूक्ष्म होकर इन्हें ग्रहण कर सकती है, एवं स्वयं ही परमात्म तत्व का अनुभव कर सकती है।

सद्गुरू की कृपासेही द्वैत उपासना की मित्थ्या धारणा का खण्डन हो कर यह जो सगुण नाम रूप की सृष्टि दिखाई देती है उसे धारण करनेवाले निर्गुण निराकार परमात्मा की पहचान आत्म अनात्म विवेक द्वारा होती है। और फिर सद्गुरू कृपासे k. उपनिषद, वेदान्त ज्ञान सिद्धांतोसे केवल अद्वैत परमात्मा ही है और कुछ नही इसका बोध होता है।
श्री गुरू ज्ञान मार्गसे मर्त्य मानव को अमरत्व प्रदान कर देते हैं । सिर्फ पूर्ण श्रद्धा एवं शरणागती की आवश्यकता है।

मेरे सद्गुरू परमपूज्य परमेश्वर स्वामी अनिलजी महाराज शबल ब्रह्म याने सगुण ब्रह्म के स्वरूप मे दृश्यमान होने की कृपा करते हैं और आत्मरूप से सर्वव्यापी है। यह जो दिखाई देनेवाला विश्व है यह उनका ही रूप है।

मनुष्य देहधारी उनके स्वरूप वर्णन करने का प्रयास करता हूं। उंचा कद, प्रसन्न व्यक्तिमत्त्व, तेजोमय मुखमंडल, सुहास्य वदन, आश्वस्त करनेवाली कृपालु दृष्टि। जिसे भी उनके समक्ष पहुंचने का महद्भाग्य प्राप्त होता है, उसकी अपनी सारी परेशानियां, बेचैनी दूर होकर शांति अनुभव करता है। हम संसारी जीवों की परेशानीयां, दुःख दर्द वह अच्छी तरह समझते हैं। इसमे ज्ञानी महात्मा की सम्यक दृष्टिही नही उसके साथ ही उन्हें जो अपरिमित दुखोंका सामना संन्यस्त पूर्व संसारी जीवन में करना पडा, उन अनुभवों का अंतर्भाव भी है।

परमपूज्य स्वामी; दत्त भगवान का यह प्रकटीकरण उनके माताजी के उपासना स्वरूप जब घर में हुआ तब अत्यन्त संपन्न स्थिति थी। लेकिन शीघ्र ही यह स्थिति निर्धनता की ओर जाने लगी। जैसे भगवान श्रीकृष्णजी ने श्रीमद्भगवतगीता के कहा है की ज्ञानी योगी का निर्धन घर में अवतरित होना यह परमेश्वरी आशिर्वाद है।
बाल्यावस्था एवं युवावस्था मे स्वामीजी को अपरिमित कष्ट एवं दुखों का सामना करना पडा। फिर वे निकल पडे भगवान की खोज मे जो इतने दुःख दर्द और परेशानियां दे रहा है। वे कई संत महात्माओंसे मिले। आपने परमगुरू नाना महाराज तराणेकर से भक्तिमार्ग की दिक्षा ली, और उनके आश्रम में सेवा की।

फिर स्वामीजी की भेंट परमगुरू सिद्ध ज्ञानी महात्मा संत खप्तिनाथ महाराज से हुई। और द्वैत बुद्धी खण्डन एवं अद्वैत परमात्म तत्व के ज्ञान मार्ग, जो उपनिषद, वेदान्त का ज्ञान मार्ग, उसपर चलना शुरू हुआ। इस मार्ग पर अग्रसर होने मे काफी कठिनाइयां थी। महाज्ञानी संत खप्तिनाथ महाराज शब्दों में ज्ञान तत्व गुप्त रहस्य के तरह अंतर्भूत होते थे। विचार साधना करके उन तत्थ्योंतक पहुंचना होता था।उदाहरण स्वरूप, परमगुरू पांच वाक्यों में पूरी श्रीमद्भगवतगीता मे समाए हुए तत्व गुप्त रूप से विदित करते थे।
घरबार, कारोबार, सगे-संबंधी इनकी परवाह न करते हुए परमपूज्य स्वामीजी ने श्री गुरू की सेवा और ज्ञान तत्थ्य के अनुभव को प्राथमिकता दी। महाज्ञानी संत खप्तिनाथ महाराज ने प्रसन्न होकर स्वामीजी को आत्मज्ञान, आत्मानुभव प्रदान किया।
भगवान शंकराचार्य भी कहते हैं की ज्ञानी सद्गुरू पारस मणी से भी महान है। वे योग्यता प्राप्त शिष्य को अपने जैसा ही ज्ञानी सद्गुरू मे परिवर्तित करते है।

दत्तावतारी परमपूज्य सद्गुरू स्वामी अनिलजी महाराज श्रोत्रिय सद्गुरू है। उपनिषद, वेदान्त, प्रस्थानत्रयी के शास्त्र ग्रंथ मे समाए हुए सुप्त ज्ञान तत्व संसारी बुद्धी मे ग्रहण हो इस तरह से समझाते है।
आत्मज्ञानी महात्मा जिवित होते हुए मोक्ष, परमानंद को प्राप्त हुए होते हैं। उन्हें सब कुछ प्राप्त हुआ होता है। लोकसंग्रह करना या नही यह पूरी तरह उनके इच्छा पर निर्भर होता है। हम सब सुगवे के साधक महाभाग्यशाली है की स्वामी अनिलजी महाराज ने मानवकल्याण हेतु वेदान्त ज्ञान जनसामान्योंतक पहुंचाने, उन्हें शाश्वत सुख का मार्ग, आत्मज्ञान का मार्ग, दिखाने का निर्णय लिया। यद्यपि शास्त्रोंमे कहा है की यह ज्ञान तत्व केवल अधिकारी शिष्य को ही उजागर करे। स्वामी महाराज बहुत कृपालु है। उन्हें जनसामान्य का दुख देखा नही जाता। और प्राप्त परिस्थिती मे द्वैत साधनाओंके तथाकथित गुरूओंद्वारा आम लोगों को निजी स्वार्थ के लिए गुमराह करने के भीषण स्थिति मे लोगों को ज्ञान तत्वोंसे अवगत कराना जरूरी समझते हैं। स्वामीजी कहते हैं कि कोई भी पढा लिखा व्यक्ति इस ज्ञान पथ पर चलकर सुखदायक जीवन बिता सकता है।
इसलिए स्वामीजी ने अपने शिष्यों एवं भक्तों द्वारा सुगवे संस्था गठित की जिसके वे किसी तरह से संबंधित नही न ही लाभार्थी हैं ।
इस सुगवे संस्था को स्वामीजीने गुरूभक्तियोगका आशिष दिया है। यह संस्था स्वामीजी के मार्गदर्शन से वेदान्त ज्ञान, जो ऋषिमुनियों का मार्ग, आदि शंकराचार्य का मार्ग, परमगुरू संत खटेश्वर महाराज का मार्ग, परमगुरू संत खप्तिनाथ महाराज का मार्ग लोगों के कल्याण हेतु सबतक पहुंचा रही है।
परमपूज्य स्वामीजीकी वाणी केवल वेदान्त ज्ञान ही प्रसृत करती है, फिर किसे पसंद हो या न हो।

यह ज्ञान लोगों को समझाने हेतु स्वामीजी ने आसान एवं सरल शब्दों में कई लेख, कविताए, वेदान्त ज्ञान ग्रंथ, श्रीमद्भगवतगीता का भगवान शंकराचार्य के भाष्य सहित मराठी पद्य रचना, ग्यारहवीं सदी के वेदान्त ज्ञान पद्यरचना पर ध्वनिमुद्रित प्रवचन ऐसे युग श्रेष्ठ वेदान्त साहित्य निर्मिती की है।

साधकों के लिए जिन प्रार्थनाओं रचना कि गयी है उन सबमे वेदान्त ज्ञान सिद्धांत अंतर्भूत है। सुगवे के सभी उत्सवों का वेदान्त ज्ञान चर्चा सत्र अविभाज्य हिस्सा है।

परमपूज्य स्वामीजी प्रसिद्धि पराङ्गमुख है।
स्वामीजी का जीवन सादगीपूर्ण है। सभीके प्रति उन्हे स्नेहभाव रहता है फिर चाहे कोई उनका अहित करनेवालाही क्यों न हो।
स्वामीजी कहते हैं की गुरूवचन एवं शास्त्र वचन का श्रवण मनन निदिध्यासन करके उसे अनुभव करना ही सुगवे का ज्ञान मार्ग है। इसे परमगुरू संत खटेश्वर महाराज, परमगुरू खप्तिनाथ महाराज की डेढ सौ साल की परंपरा है। परमगुरू वासुदेवानंद सरस्वती महाराज एवं परमगुरू नाना महाराज की परंपरा है। गो सेवा की परंपरा है।
परमपूज्य स्वामीजी केवल संकल्प मात्र से अपने शिष्यों एवं भक्तोंकी रक्षा करते हैं।
ज्ञानी सद्गुरू को श्रीमद्भगवतगीता मे श्रीकृष्ण भगवान भी अपना आत्मा कहते है।
जिस मायाकी दुनिया मे परमेश्वर साक्षीभाव से देखते हैं उसी भ्रम की दुनिया मे परमेश्वर सद्गुरू रूप लेकर संसारी जीवों को संसार सागर पार कराता है यह अगम्य है। सद्गुरू को समझना मानवी बुद्धि से परे है। परमेश्वर तक पहुंचाने वाले (याने स्वयं का परमात्म स्वरूप का अनुभव प्रदान करनेवाले) सद्गुरू परमेश्वर के चरणकमलों सदैव शरणागत रहने कि बुद्धि प्रदान करे।
सद्गुरू स्वामीजी बुद्धि को निरंतर अपने चरणोंमे आश्रय दे यही प्रार्थना।

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