Importance of Guru in Life
गुरुवक्त्रस्थितं ब्रह्म प्राप्यते तत्प्रसादत:।
गुरोर्ध्यानं सदा कुर्यात् कुलस्त्री स्वपतेर्यथा।
स्वाश्रमं च स्वजातिं च स्वकीर्तिपुष्ठीवर्धनम्।
एतत्सर्वम् परित्यज्य गुरोरन्यत्र भावयेत्।
ब्रह्म शब्दरूपसे गुरुबाणी (गुरु मुख) में रहता है। अगर गुरुप्रसाद प्राप्त हो गया तो ब्रह्म प्राप्ति होती है। जैसे पतिव्रता स्त्री हर समय अपने पति का ध्यान करती है, ठीक वैसेही और उतनिहि बेचैनिसे गुरुका ध्यान करना चाहिए। यह नही देखना चाहिए की मेरा आश्रम क्या है, (ग्रहस्थ या सन्यास), जाति क्या है (ब्राह्मण आदि), क्या मेरी (यह सब करनेसे) कीर्ति बढ़ रही है या मेरा पोषण (इच्छित लाभ) हो रहा है। इन सब का परित्याग कर गुरु छोड़कर अन्यत्र भाव नही रखना चाहिए। (शरणागति नही लेना चाहिए)
Place of Brahm is in Speech of Gyani Sadguru. With Sadguru’s benevolence the boon of Brahm Dhnyan is bestowed upon the Seeker. Seeker has to Imbibe Sadguru all the time in his heart. Faithful wife intensely remembers her beloved husband, and she keeps him all the time in her heart. With the same intensity, Sadguru should be remembered and Imbibed in heart.
This is to be done, Without paying any attention to; whether I am bachelor or married, whatever be my caste and gender, whether it will enhance my earnings or reputation. Very clear intention has to be there that, no one else, but Sadguru is the only savior. With this intention with complete surrender to Sadguru, study of His sayings, study of Scriptures as per His instructions will earn Sadguru’s Benevolence.
दृष्टान्तो नैव दृष्टस्त्रिभुवनजठरे सद्गुरोर्ज्ञानदातुः स्पर्शश्चेत्तत्र कल्प्यः स नयति यदहो स्वर्णतामश्मसारम् । न स्पर्शत्वं तथापि श्रितचरणयुगे सद्गुरुः स्वीयशिष्ये स्वीयं साम्यं विधत्ते भवति निरुपमस्तेन वाऽलौकिकोऽपि ॥
श्रीमद् जगत्गुरू परमपूज्य आचार्य, भगवन शंकराचार्य सद्गुरू योग्यता एवं महानता प्रथम श्लोक मे उधृत करते हैं। क्योंकि, “जिसे श्रीगुरूपर भगवान जैसी परम दृढ भक्ति है उसे ही तत्व का प्रकाश, (अनुभव) होता है”, इस प्रकार की श्रुति है। ज्ञानदान सद्गुरु की महानता दृष्टीगोचर हो, ऐसा कोई भी दृष्टांत इस ना ना प्रकारके विभिन्न वस्तुओं से भरे हुए तोनो लोकोंमे प्राप्त नही होता।
व्यवहारिक क्षुद्र स्तर की विनाशशील विद्या की शिक्षा देनेवाले गुरू के लिए कोई उपमा तो अवश्य मिल जाएगी किन्तु जहां खुद भगवानजी ने, “न हि ज्ञान एव सदृशं पवित्रमिह विद्यते” (ज्ञान जैसी पवित्र वस्तु इस जगत मे नही) इस अत्युच्च प्रकारसे ज्ञान पावित्र्य की महानता जताई है, ऐसी महानता शब्दों मे बताने के लिए त्रिभुवन मे कोई दृष्टांत नही मिलता। पारस जो की केवल अपने स्पर्श मात्र से लोहे जैसे निम्न स्तर के धातु को स्वर्ण मे परिवर्तित कर देता है, वह भी सद्गुरु की महानता बयान करनेवाला उदाहरण नही हो सकता। पारस लोहे को सिर्फ उसके निम्न स्तर से उच्च स्तर या स्थिति प्रदान करता है लेकिन उसे पारस गुणधर्म नही प्रदान कर पाता। याने जिसे अनुग्रहित करना है उसको स्वयं कि स्थिति नही प्रदान करता। सद्गुरु के चरणों मे शरणागत होकर रहनेवाले शिष्य को सद्गुरु अपनी खुदकिही स्थिति प्रदान करते हैं। उसे स्वयं जैसे नही बल्कि पूर्ण रूपसे स्वयं ही मे परिवर्तित करते है। नर का नारायण बनाते हैं।
इसलिए सद्गुरु शरण, सद्गुरु सेवा एवं प्रसन्नता यही परमपुरुषार्थ प्राप्त करनेका सर्वश्रेष्ठ साधन है।
Shrimad Jagatguru Bhagawan Adi Shankaracharya depicts the Greatness and Glory of Sadguru in this Shloka. Shruti says, “Who has Supreme consistent steadfast devotion, towards Sadguru, He only begets the boon of Experiencing Paramatma, Unification with God. No analogy exist in this gigantic Universe, which can reveal the eminence of Gyani Sadguru. Perhaps there may be some simile for the teachers who are imparting worldly knowledge of the temporary nature. Lord Shrikrishna Himself has told the greatness of Gyan (in Shrimadbhagavatgita, “N, hi Dhnyan eva sadrusham pavitramiha vidyate”) ‘There is nothing in this whole Universe, which is Absolutely Pure as Gyan.’
Such a greatness of Gyani Sadguru can not be encapsulated in any kind of example. Paras is a stone which converts the low level iron into Gold, Supreme level metal by touching iron. Even that can not reveal the greatness of Gyani Sadguru. Because paras only changes the stature of iron from lower metallic state to much higher metallic state of Gold. But can not inculcate its property of transformation making that like Paras. Where as Gyani Sadguru Transforms the
Seeker (devoted to Sadguru, ardently following the Gyan path shown by Sadguru) to Gyani Sadguru like Himself. Sadguru completely transforms the Seeker into Self, Unifies Him with God transforms the Seeker into God like Himself.
Therefore Supreme Gyan path is to surrender to Sadguru, be in selfless service to Sadguru and please Sadguru by following all the instructions.
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया । उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ।।
है अर्जुन,
ज्ञान यज्ञ करने अर्थात ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु के शरण में जाना ही एकमात्र मार्ग है। इसलिये अनन्य भाव से
गुरूचरणोंमे शरण लेकर, उनके वचनों मे प्राणों से बढ़कर विश्वास रखते हुए उनके उपदेश प्राप्त करना है। इसीसे संसार सागर पार करके ज्ञान प्राप्ति हो सकती है।
अर्थात गुरु श्रुति संपन्न होना आवश्यक है। वे उपनिषदोके मर्म को जानने वाले हो। उपनिषद के ऋचाओं के गुढार्थ को, उसमे विद्यमान सुप्त ज्ञान को प्रकाशित करने वाले हो।
गुरु जो ब्रह्ममय, ब्रह्म से एक रूप, सदैव आत्मरूप में रहने वाले, जिसे शिष्य प्रति अतिशय अनुकंपा हो, शिष्य को इस दूखभरे जगत से इस जन्म मृत्यु के शृंखला से मुक्त करने की जिसकी इच्छा हो, जो शिष्य के मन को जानता हो ऐसे गुरु हो।
ऐसे तत्व दर्शी गुरु के दर्शन होते ही उन आचार्य के समीप जाकर साष्टांग दंडवत, प्रणाम करके उनकी यथा योग्य सेवा शरीर मन और वाणी द्वारा करते रहे।
गुरु कि अनन्य भाव से तन – मन – धन सारा कुछ उनके चरणों में अर्पित करते हुए उनकी सेवा करते रहे। यही ज्ञान प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ महायज्ञ हैं।
सद्गुरु चरणों में सदैव, आजीवन शरण लेते रहे।
निष्कपट भाव से गुरु सेवा करते रहे। गुरु संमुख कभी भी चतुरता उजागर ना करे। न ही कभी कृपणता दिखा।
रोज गुरुसेवा करते हुए उनकी प्रसन्नता कैसी होगी इसी पर ध्यान दे। अत्यंत कुशलतापूर्वक गुरु पसंद क्या है, गुरु स्वभाव कैसा है इसका अभ्यास करते हुए उन्हे प्रसन्न कर। उन्हे प्रसन्न करने के लिए जो सभी कुछ करने कि आवश्यकता है, वह बिना झिझक कर। उसके लिये सभी रूकावटें दूर करके , अपने अहंकार का भी त्याग कर।
फिर गुरु के मन कि प्रसन्नता देखकर एक दिन अपने जिज्ञासा नुसार गुरु के सम्मुख बडी नम्रता से अपने प्रश्न पुछे। शास्त्रों का गहराई से अध्ययन करने के बाद ही केवल ज्ञान संबंधी जिज्ञासा या शंका के अनुसार ही गुरु सम्मुख अपने प्रश्न रख्खे।
ज्ञान एवं वेद में उपस्थित सुप्त ज्ञान जो केवल पढने से समझ नहीं आता, गुरु से समझ लें। वे महापुरूष आत्मज्ञानी ज्ञान तत्वों का उपदेश करते हैं। तत्वदर्शी जिन्होंने ज्ञान के तत्वों को प्रत्यक्ष देखा है, अनुभव किया है, अपरोक्ष ज्ञानी हैं ऐसे समर्थ सद्गुरु आत्मज्ञान का उपदेश करते हैं। आत्मज्ञान का उपदेश करके वे शिष्य को कृतार्थ करते है, शिष्य का जीवन सार्थक कर देते हैं, उसे अमर कर देते हैं।
For performing Dhnyan Yadhnya, to beget Dhnyan, the only way is to surrender to the Guru. Therefore taking Guru as the only savior, surrendering self on the feet of Guru, trusting the words – tellings of Guru more than one’s life, beget the advice from the Guru. Only this can save in this material world and and bestow the blessings of Dhnyan.
However Guru needs to be well versed in Shruti. Guru must understand the essence of the Knowledge given in Upanishads. Guru must be able to decipher the subtle knowledge pervading in the verses of Upanishads to enlighten the disciple. Guru must be experiencing oneness with the Brahma, compassionate towards the disciple, desirous to free him from this grief stricken world – from the cycle of birth and death, understands the mind of the disciple, Guru should be such Atmadhnyani Guru.
When such Tatvadarshi Dhnyani (Enlightened Sadguru well versed in Shruti) is found, bow to him and serve him by body, speech and mind.
Carry out Guru seva (service to Guru) with utmost reverence by surrendering body – mind – belongings. This is the Supreme Mahayadhnya for begetting Gyan.
Take life long surrender on to the feet of Sadguru. Do not show off your intelligence, wisdom in front of Sadguru. Serve Sadguru honestly and sincerely. Do not be miser.
While serving Sadguru find out the means of his cheerfulness. Carefully study his likes and dislikes. Do everything without hesitation to please him, give up anything, any obstacle coming in between including your ego.
Then keeping careful attention towards the cheerfulness of Guru, one day put up the questions seeking the satisfaction of your quest in a polite manner.
The questions arising should be based upon the study of Shastras, dwelling deeply into Gyan principles, reflecting the difficulties in grasping. The subtle knowledge pervading in Ved which cannot be grasped just by reading, request Guru for revealing those subtle secrets.
Atmadhnyani Great Sage reveals the Gyan, directly make you see and understand. Sage himself is self realised and is experiencing oneness with Parmatma. Such Aparoksha Dhnyani sage by advising Atmdhnyan transforms the seeker disciple. The disciple is liberated from all the worldly bondages and the cycle of birth and death, becomes immortal, attain Parmatma.
These shlokas are taken from the Hindu holy scriptures, which explains about what is the role of a Guru in one’s life.