परमपूज्य परमेश्वर सद्गुरू स्वामी अनिलजी महाराज के चरणों में शिरसाष्टांग प्रणिपात
आज दीप अमावास्या है।
जन्म मृत्यु चक्र के अज्ञान के घोर अंधकार से अमरत्व के दीप प्रकाश की ओर ले जाने वाला शुभ पर्व!
हाल ही में परमपूज्य स्वामीजी की कृपा से “देव कोठे आहे” इस विलक्षण प्रभावशाली वेदान्त ज्ञान ग्रंथ के उपसंहार का श्रवण हुआ। जितनी बार यह श्रवण होता है उतनी ही प्राचीन ऋषि मुनियों के मानवों प्रति प्यार की गहराई नजर आती है। उन्होंने परमेश्वर एकत्व प्राप्त कर लिया था। अभी कुछ भी बाकी न था। तथापि मानवता के कल्याण हेतू जो शब्द बद्ध हो नही सकता उस परमेश्वर को पाने का ज्ञान उसकी लिंक गुरूपरंपरा के कृपाप्रसाद द्वारा तथा प्रस्थान त्रयी ग्रंथो द्वारा इस स्वप्न जगत मे विरासत के रूप मे दिया।
युगों से यह ज्ञान मौखिक रूप से जतन करते हुए एक पिढी से दूसरी पिढी को गुरूपरंपरा द्वारा प्रदान करते रहे। तभी वर्तमान काल मे यह लिखित रूप मे प्राप्त हो सका।
वर्तमान काल मे इस ज्ञान दीप (प्रस्थान त्रयी ग्रंथ) द्वारा मानव जीवन के अज्ञान के अंधकार से अमरत्व का प्रकाश प्रदान करने वाले ज्ञानी महात्मा विरले ही होंगे। स्वामी अनिलजी महाराज को सभी से अतोनात प्रेम है कि यह औपनिषदिक ज्ञान का सार इस वेदान्त ग्रंथ तथा उपसंहार मे स्वामीजी द्वारा दिया गया है। स्वामीजी कि विलक्षण प्रतिभा द्वारा प्रस्थान त्रयी ग्रंथोमे दी गयी परमात्मा की ओर पहुंचाने वाली श्रुतियां उपसंहार मे एकत्रित करते हुए उनका निरूपण किया है। ज्ञानी गुरू परंपरा द्वारा परमात्म एकत्व प्राप्त सद्गुरू स्वामी अनिलजी के अलावा इस तरह का उपक्रम क्वचित ही कहीं होगा ।
स्वामीजी के कृपाप्रसाद से हम संसारी जीवों की बुद्धि सूक्ष्म होकर अपने आत्मामे ही यह ज्ञान प्रकाशित हो और मानव जीवन कृतार्थ हो, यही सद्गुरू चरणों में प्रार्थना।