परमपूज्य परमेश्वर सद्गुरु स्वामी अनिलजी महाराज के चरणों में शिरसाष्टांग प्रणिपात
पुनःप्रसारीत
ज्ञानलेख 51 (हिंदी संस्करण)
सुहासजी और मायाजी के प्रश्न
(कै. सुहासजी मार्केण्डेय, विश्वस्तरीय अनुसंधान संस्थान, भारत सरकार के परमाणु विभाग के , “भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र” मे ‘आऊटस्टँडींग सायंटिस्ट ‘ थे )
“आपको एवं ग्रुप के सभी सदस्यों को सुहास और माया का नमस्कार। इस ग्रुप में प्रश्नोत्तर के जरिये आपका मार्गदर्शन हम सभी के लिए मौल्यवान है । अबतक मै पोस्ट पढता रहा और कोई प्रश्न नहीं पूछे । मुझे लगता है, यहाँ जो बताया जा रहा वह हम सभी समझते है , सहमत है की इसे अपनाना चाहिए लेकिन अपनाते हुए दिक्कत महसूस करते है जहाँ गुरु का आशिर्वाद मायने रखता है जिसलिए गुरु भक्ति एवं गुरुपर पूर्ण बिश्वास अत्यावश्यक है ।
यह गंभीर भक्ति योग हुआ । तथापि ऐसा कहा है की बुद्धि जिवियों के लिए राजयोग ठीक है । हमारे जैसे सामान्य लोगों की दोनों मार्ग अपनाने की मर्यादा समझते हुए किस मार्ग की तरफ जाए ताकि हम अंतिम लक्ष्य जिसे मोक्ष कहते हैं वह प्राप्त कर सके ? मुझे पता नहीं की मेरा प्रश्न इस ग्रुप में रखने योग्य हैं या नहीं; अगर है तो कृपया मार्गदर्शन किजिये ।
सुहास मार्केणडेय”
परमपूज्य स्वामी जी का उत्तर
श्री. सुहास और सौ. माया, मै आपको धन्यवाद देता हूँ सिर्फ इसलिए नहीं की आप इस ग्रुप को ध्यान में रखते हैं बल्कि इसलिए भी की आपने सक्रिय सहभाग लेकर सभी के मन मे उभर रहे मूलभूत प्रश्न एवं संदेह प्रस्तुत किए, जो इस ग्रुप के लिए स्वाभाविकत: अनुरूप हैं । इस ग्रुप के लिए यह सराहनीय है की ज्येष्ठ वैज्ञानिक यहाँ के चर्चा मे रूचि लेकर बिना हिचकिचाहट अपने प्रश्न पूछ रहे ह ।इस तरह का संभाषण सदस्यों एवं अन्य कई लोगों को भविष्य में भी लाभदायक होगा ।
इस ग्रुप मे चर्चा करते हुए मै बहुत उत्साहित एवं प्रसन्न हूँ और आपको एवं बाकी सदस्यों को मै आश्वस्त कर देना चाहता हू की मेरे उत्तर पूरी तरह सत्य होंगे । जब भी मुझे लगेगा मुझे उत्तर पता नहीं है , तो ये बताने में मुझे कोई संकोच नहीं होगा । तथापि आप अंदाजा लगा सकते है की प्रामाणिक प्रश्न और यहां दिए हुए मार्गदर्शन का सार्थ उपयोग से मुझे समाधान होगा ।
आपने सही बताया की व्हाँट्सअप पर बड़े बड़े संभाषण नहीं किए जा सकते ।लेकिन जलद एवं सुलभ संपर्क के लिए यह बेहतर हैं । आप और सभी सदस्य विद्वान तथा समझदार हैं , मै भी यहाँ यथार्थ एवं विषयानुकूल रहूंगा ।
अभी आपके संदेह की तरफ आते हुए जिनकी यहा चर्चा करना जरूरी है; मै उन्हें एक ही बड़ा उत्तर न देते हुए कुछ अंशों मे विषद करूंगा ।ँ
गुरु वशिष्ठ ने प्रभू रामचंद्र से ज्ञान देते हुए यह कहा
यावन्नानुग्रह: साक्षाज्जायते परमेश्वरात्।
तावन्न सद्गुरुः कश्चित्
सच्छास्त्रामपि नो लभेत्।।
जबतक आप पर उस सत्चिदानंदघन परमात्मा की परम कॄपा नहीं होगी, आपको न
तो सद्गुरु मिल सकते है और न ही कोई जिज्ञासा आपके मन, बुद्धि मे जागृत हो सकती है, ये जानने के लिए की शास्त्रो मे क्या लिखा है । गुरु वशिष्ठ की सीख से पता चलता है की इस ग्रुप के सदस्य बनने वाले सभी को प्रभू की कृपा एवं स्वयं ईश्वर का मार्गदर्शन प्राप्त है ।
आपकी यह चिंता व्यर्थ है की इस फोरम की चर्चा आपको समझमें आती है किंतु अवलम्बन करने में कठिनाई होती है ।आपके भीतर जो ईश्वर स्थित है वहीं आपसे धीरे धीरे सबकुछ अनुपालित करवाएंगे पता भी न चलने वाले अनुपात मे ।
आप बेफिक्र हो कर अपना पढना एवं गहरी सोच अपने सामान्य जीवनक्रम में कोई बदलाव किए बिना जारी रखिए ।यह श्रवण मनन का अभ्यास अपने आप ही आप की बुद्धि में विवेक लाएगा जिससे आप मूल्यों पर आधारित महत्वपूर्ण जीवन जिएंगे ।
सही मायने में जरूरत है , अपने गुरु ( जो भी गुरु हो )तथा शास्त्रो पर अटल बिश्वास निर्माण करने का सच्चा और अखण्ड प्रयास ।
( भक्ति योग और राज योग पर आगे के अशं मे)
क्रमशः