सद्गुरु श्री अनिलजी महाराज के चरणों में शत शत नमन।
मैं श्रीमती शुभांगी वेदांतवार हूं। मैं सुगवे के प्रशासक और आश्रम प्रमुख श्री सुरेश राव वेदांतवार की पत्नी हूं। हम दोनों 7 साल से चंदूर आश्रम में रहकर श्री गुरु की सेवा कर रहे हैं। आज दिनांक 22 दिसंबर 2022 गुरुवार को मैं सभी सदस्यों को एक प्रत्यक्ष रहस्योद्घाटन सुना रही हूं जो मेरे साथ हुई। आज मार्गशीर्ष मास के अंतिम गुरुवार की अमावस्या है। आश्रम में रोजाना की तरह सुबह की गतिविधियां चल रही थीं। अखंड गुरु नाम स्मरण शुरू था। सुबह का नाश्ता तैयार हो रहा था।
मार्गशीर्ष के अंतिम गुरुवार हेतु मैं श्री गुरु महाराज के दर्शन करने गईं। महाराज समाधी अवस्था में थे। आजकल वह देर रात 1-2 बजे तक जागते हैं और फिर 4 बजे उठकर साधना शुरू करते हैं। कभी-कभी तो सुबह के 8-9 बज जाते हैं। उस दिन इतनी ही देर हो गई थी। मैंने उनकी आरती उतारी और दक्षिणा और फल अर्पित कर उन्हें प्रणाम किया। कुछ ही समय में, मैंने वास्तव में स्वामीजी के स्थान पर श्री दत्त प्रभु को देखा, जो आधी बंद आँखों से समाधि अवस्था में थे। ऐसे दिव्य दर्शन होने से मेरे पूरे शरीर में कंपकंपी आ गई। ऐसा दिव्य अनुभव मुझे पहली बार हो रहा था, इस कारण मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था व आँखों में पानी आ रहा था। आज मुझे व्यक्तिगत रूप से श्री दत्त प्रभु के विशद साक्षात्कार का दुर्लभ अनुभव हुआ, जिस से मेरा जीवन धन्य हो गया। श्री स्वामीजी के रूप में दत्त दर्शन अनन्त जन्म के पुण्य के रूप में जीवन में परम आनंद का क्षण था। इस आनंद के 5 मिनट में ही मन इतने भाव से भर गया था कि आनंद से नाचने का मन हो रहा था। मुझे पूर्णतः विश्वास हुआ कि हमारे स्वामी अनिलजी ही वास्तविक दत्तप्रभु हैं। पहले सुगावे के कई अनुभवी सदस्य कहते थे कि स्वामी जी ही दत्तप्रभु हैं, किंतु जल्दी श्रद्धा नही बैठती थी । आज, हालाँकि, जीवन कृतज्ञ हो गया।
वह दिन बड़े सुख पूर्वक बीता। रसोई घर में श्री स्वामी जी के लिए खाना बनाते समय लगा कि श्री स्वामी जी स्वयं कुर्सी पर बैठे सूचना दे रहे हैं। यह जन्म सार्थक हुआ। ऐसा निरंतर अनुभव हो रहा है कि श्री स्वामीजी हमारे आसपास ही हैं। महाराज ने कहा कि दर्द हो रहा है। जब उनके चरणों में तेल लगाने हेतु पूछा,तो महाराज ने कहा नहीं।
यह मेरा अनुभव है। यह श्री गुरु सेवा का पुण्य है। गुरु बिन न गति न ज्ञान इसका अनुभव हुआ। हर दिन की शुरुआत श्री विष्णु सहस्त्र नाम से होती है। इसका अनुभव हुआ।
सौ शुभांगी वेदांतवार(चांदुर आश्रम)